हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास Medieval History of Himachal Pradesh

(i) महमूद गजनवी – महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किये थे। महमूद गजनवी 1023 तक नागरकोट को छोड़कर काँगड़ा के अधिकतर हिस्सों पर अधिकार नहीं कर पाया था। त्रिलोचन पाल और उसके पुत्र भीम पाल की मृत्यु के उपरान्त 1026 ई. में तुर्कों के अधीन काँगड़ा आया।

(ii) तुगलक-

1. मुहम्मद बिन तुगलक  – मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) ने 1337 ई. में नागरकोट के राजा पृथ्वीचंद को पराजित करने के

लिए सेना भेजी थी जिसका उसने स्वयं नेतृत्व किया।

2. फिरोजशाह तुगलक – फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) ने काँगड़ा के राजा रूपचंद को सबक सिखाने के लिए 1361 ई. में नागरकोट पर आक्रमण कर घेरा डाला। राजा रूपचंद और फिरोजशाह तुगलक का बाद में समझौता हो गया और नागरकोट पर से घेरा

उठा लिया गया। रूपचंद ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार कर ली।

(ii) तैमूरलंग का आक्रमण – 1398 ई. में मंगोलों का आक्रमण तैमूरलंग के नेतृत्व में हुआ। तैमूरलंग के आक्रमण के समय काँगड़ा का राजा मेघचंद था। तैमूरलंग के आक्रमण के समय हिण्डूर (नालागढ़) का शासक आलमचंद था जिसने तैमूरलंग की सहायता की जिसके फलस्वरूप तैमूरलंग हिण्डूर को हानि पहुंचाए बिना आगे बढ़ गया।

   * तुर्क और कांगड़ा पहाड़ियाँ:

  • महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था।
  • ट्रांस हिमालय के शाही राजा आनंदपाल ने महमूद गजनवी के खिलाफ हिमालयी शासकों का एक संघ बनाया।
  • आनंदपाल की किस्मत खराब हो गई जब उसका हाथी युद्ध के मैदान से भाग गया, जिससे उसकी सेना में अराजकता फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप महमूद गजनवी के खिलाफ उसकी हार हुई।
  • महमूद गजनवी ने 1009 ई. में कांगड़ा पर आक्रमण किया और अपार खजाना लूट लिया।
  • नगरकोट पर 1043 ई. तक तुर्कों का शासन रहा और उसके बाद दिल्ली के तोमर राजा महिपाल ने नगरकोट से तुर्कों का शासन समाप्त कर दिया।
  • महमूद गजनवी 1023 ई. तक नगरकोट को छोड़कर कांगड़ा के कई हिस्सों पर शासन नहीं कर सका
  • राजा त्रिलोचन पाल और उनके पुत्र भीम पाल की मृत्यु के बाद 1026 ई. में कांगड़ा तुर्कों के शासन में आ गया।
  •  *तुगलक और कांगड़ा पहाड़ियाँ:

  • मुहम्मद गौरी, गुलाम वंश (1206-1290 ई.) तथा खिलजी वंश (1290-1320) ने पहाड़ी राज्यों पर विशेष ध्यान नहीं दिया।
  • 1337 ई. में , मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) ने नगरकोट के राजा पृथ्वी चंद को हराने के लिए एक सेना का नेतृत्व किया।
  • कांगड़ा के राजा रूप चंद केंद्रीय सत्ता के खिलाफ प्रतिशोधात्मक अभियानों में भाग ले रहे थे, और उन्होंने दिल्ली तक के मैदानी इलाकों को लूटा , जब वे लौट रहे थे, तो उनका सामना हुआ और उन्होंने कश्मीर के सुल्तान शहाबुद्दीन के हाथों अपनी सारी संपत्ति खो दी।
  • कांगड़ा के राजा रूपचंद को सबक सिखाने के लिए फ़िरोज़ शाह तुगलक ने 1365 ई. में नगरकोट पर आक्रमण किया और अपनी सेना के साथ किले को घेर लिया ।
  • इस आक्रमण का उल्लेख हमें ‘ तारीख-ए-फ़िरोज़-फ़रिश्ता ‘ और ‘ तारीख-ए-फ़िरोज़-शाही ‘ में मिलता है।
  • राजा रूप चंद और फ़िरोज़ शाह एक समझौते पर पहुँचे जिसमें राजा रूप चंद ने फ़िरोज़ शाह की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • 1365 ई. में समझौते के बाद फ़िरोज़ शाह ने ज्वालामुखी का दौरा किया और संस्कृत की 1300 पुस्तकें अपने साथ ले गया और एक पुस्तक का फ़ारसी में अनुवाद एक प्रख्यात फ़ारसी लेखक ‘ अजुद्दीन ख़ालिद खानी ‘ ने किया और पुस्तक का नाम ‘ दलाई-ए-फ़िरोज़शाही ‘ रखा। दर्शनशास्त्र, ज्योतिष और भविष्यवाणी से संबंधित है।
  • ज्वालामुखी मंदिर में अलेक्जेंडर द्वारा ‘ नौशाबा’ (सिकंदर की पत्नी) की एक छवि छोड़ी गई थी जिसकी लोग पूजा करते थे।
  • 1375 ई. में राजा रूप चंद की मृत्यु के बाद उनके पुत्र सागर चंद गद्दी पर बैठे।
  • फरिश्ता के वृत्तांत के अनुसार, एक दिवंगत राजा के सम्मान में नगरकोट का नाम बदलकर मोहम्मदाबाद कर दिया गया।

तैमूर और कांगड़ा पहाड़ियाँ:

ü  1398 ई. में मंगोलों ने तैमूर-लंग के नेतृत्व में कांगड़ा पर आक्रमण किया।

ü  इस आक्रमण के समय कांगड़ा के राजा मेघ चंद थे । 1399 ई. में तैमूर ने कांगड़ा से पीछे हटते समय शिवालिक क्षेत्र पर आक्रमण किया

ü  तैमुर के आक्रमण के समय हिंदुर (वर्तमान नालागढ़) का शासक आलम चंद था , जिसने तैमुर की मदद की और परिणामस्वरूप, तैमूर हिंदुर को नुकसान पहुंचाए बिना आगे बढ़ गया।

ü  तैमूर ने नूरपुर और  सिरमौर पर भी आक्रमण किया और रतन चंद ने उसका विरोध किया । 

(iv) मुगल शासन –

ü  1. बाबर – बाबर ने 1525 में काँगड़ा के निकट ‘मलीट’ में अपनी चौकी स्थापित की। बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुगल शासन की स्थापना की ।

ü  2. अकबर –  अकबर ने 1526 ई. में सिकंदर शाह को पकड़ने के लिए नूरपुर में अपनी सेना भेजी क्योंकि नूरपुर के राजा भक्तमल की सिकंदर शाह से दोस्ती थी। अकबर पहाड़ी राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए उनके बच्चों या रिश्तेदारों को दरबार में बंधक के तौर पर रखता था। अकबर ने काँगड़ा के राजा जयचंद को बंधक बनाया। जयचंद के पुत्र बिधिचंद ने अकबर के विरुद्ध नूरपुर के राजा तख्तमल के साथ मिलकर विद्रोह किया। अकबर ने बीरबल को हुसैन कुली खान के साथ मिलकर इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा। अकबर ने 1572 ई. में टोडरमल को पहाड़ी रियासतों की जमीने लेकर एक शाही जमींदारी स्थापित करने के लिए नियुक्त किया।

ü  3. जहाँगीर – जहाँगीर 1605 ई. में गद्दी पर बैठा। काँगड़ा के राजा विधीचंद की 1605 ई. में मृत्यु हुई और उसका पुत्र त्रिलोकचंद गद्दी पर बैठा। जहाँगीर ने 1615 ई. में काँगड़ा पर कब्जा करने के लिए नूरपुर (धमेरी) के राजा सूरजमल और शेख फरीद मुर्तजा खान को भेजा परन्तु दोनों में विवाद होने और मुर्तजा खान की मृत्यु होने के बाद काँगड़ा किले पर कब्जा करने की योजना को स्थगित कर दिया गया। जहाँगीर ने 1617 ई. में फिर नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहम्मद तकी के नेतृत्व में काँगड़ा विजय के लिए सेना भेजी। राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापस बुला लिया गया। राजा सूरजमल ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिए राजा राय विक्रमजीत और अब्दुल अजीज को भेजा। राजा सूरजमल ने मानकोट और तारागढ़ किले में शरण ली जो चम्बा रियासत के अधीन था।

शाहजहाँ:

ü  शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान नवाब असदुल्ला खान और कोच कुली खान कांगड़ा किले के दो प्रमुख मुगल गवर्नर थे।

ü  कोच कुली खान ने कांगड़ा किले के मुगल गवर्नर के रूप में 17 वर्षों तक सेवा की।

ü  सिरमौर के राजा मन्धान्त प्रकाश शाहजहाँ के समकालीन थे। गढ़वाल अभियानों के दौरान उन्होंने मुगलों की कई बार मदद की।

औरंगजेब:

ü  सईद हुसैन खान, हसन अब्दुल्ला खान और नवाब सईद खलीलुल्लाह खान औरंगजेब के शासनकाल के दौरान कांगड़ा किले के प्रमुख मुगल गवर्नर थे।

नादौन का युद्ध (1690-91 ): बिलासपुर के

 राजा भीम चंद ने मुगलों को कर देने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ जिसमें राजा भीम चंद को गुरु गोबिंद सिंह का समर्थन प्राप्त था और दूसरी ओर अलीफ खान के नेतृत्व में मुगल सेना को कांगड़ा बलों का समर्थन प्राप्त था। इस युद्ध में राजा भीम चंद विजयी हुए।

मुगलों और घमंड चंद का पतन

ü  औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों का पतन प्रारम्भ हो गया।

ü  अहमद शाह दुर्रानी ने 1748 ई. से 1788 ई. के बीच पंजाब के क्षेत्र पर दस बार आक्रमण किया

ü  दुर्रानी के आक्रमणों का लाभ उठाते हुए; राजा घमंड चंद ने कांगड़ा और दोआब के क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

ü  कांगड़ा किला अभी भी मुगलों के शासन के अधीन था और किले के अंतिम मुगल गवर्नर नवाब सैफ अली खान थे ।

ü  1759 ई. में, अहमद शान दुर्रानी ने जालंधर दोआब को राजा घमंड चंद को हस्तांतरित कर दिया और सतलुज और रावी नदी के बीच का क्षेत्र राजा घमंड चंद के शासन में आ गया।

मुगल और चंबा:

ü  1572 ई. में अकबर ने पहाड़ी राज्यों में शाही संपत्ति स्थापित करने के लिए अपने राजस्व मंत्री टोडरमल को नियुक्त किया।

ü  शाही संपत्ति में कांगड़ा के 66 गाँव और चंबा के रिहलू, चारी, पथियार और धरोन क्षेत्र शामिल थे।

ü  जहांगीर के शासनकाल के दौरान, 1623 में ‘ धालोग की लड़ाई’ चंबा के राजा जनार्दन और राजा जगत सिंह के बीच लड़ी गई थी जिसमें जगत सिंह विजयी हुए थे।

ü  1641 में , जगत सिंह ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया और शाहजहाँ ने विद्रोह को दबाने के लिए मुराद बख्श को भेजा।

ü  चम्बा के राजा छत्तर सिंह ने 1669 में औरंगजेब के आदेश को मानने से इनकार कर दिया , जिसमें उसने चम्बा के सभी हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। उन्होंने गुलेर, बशोली और जम्मू के शासकों के साथ गठबंधन किया और पंजाब के मुगल गवर्नर मिर्जा ओबेद बेग को हराया और उनके क्षेत्रों को उनसे वापस ले लिया।

मुगल और सिरमौर:

Ø  सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश अकबर के समकालीन थे।

Ø  सिरमौर के राजा बुद्धि प्रकाश जहांगीर के समकालीन थे।

Ø  सिरमौर के राजा सुभग प्रकाश औरंगजेब के समकालीन थे।

Ø  सिरमौर के राजा मांधंता प्रकाश, शाहजहाँ के समकालीन थे, उन्होंने गढ़वाल अभियानों के दौरान मुगलों की कई बार मदद की।