✨ अलंकार – Alankar की परिभाषा, भेद, उपभेद और उदाहरण – Alankar in Hindi
📖 अलंकार: Alankar in Hindi
🔸 परिभाषा:
Alankar अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’, जैसे स्त्री की शोभा आभूषण से बढ़ती है, वैसे ही काव्य की शोभा अलंकार से होती है।
🪄 “अलंकरोति इति अलंकारः” – जो अलंकृत करे, वही अलंकार।
📝 “कविता चाहे कितनी ही सुंदर हो, बिना अलंकार के उसकी शोभा अधूरी मानी जाती है।”
“भूषण बिन न विराजई, कविता वनिता मित्त॥” – आचार्य केशवदास
📌 सरल शब्दों में:
“शब्द और अर्थ के माध्यम से काव्य को सजाने-संवारने वाला तत्व अलंकार कहलाता है।”

🧩 अलंकार के भेद – Alankar Ke Bhed
🔹 अलंकार को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा गया है:
🟠 शब्दालंकार (Shabd Alankar)
🔵 अर्थालंकार (Arth Alankar)
🟢 उभयालंकार (Shabd + Arth Dono)
📚 पाठ्यक्रम में शब्दालंकार और अर्थालंकार पढ़ाए जाते हैं।
हिंदी व्याकरण अध्याय सूची:
भाषा, हिन्दी भाषा, वर्ण, शब्द, पद, काल, वाक्य, विराम चिन्ह, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण, विस्मयादि बोधक, संबंध बोधक, निपात , वचन, लिंग, कारक, उपसर्ग, प्रत्यय, संधि, छन्द, समास, अलंकार, रस, विलोम शब्द, तत्सम–तद्भव शब्द, पर्यायवाची शब्द, अनेक शब्दों के लिए एक शब्द, एकार्थक शब्द, शब्द युग्म, शुद्ध और अशुद्ध शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, पद्य रचनाएँ, गद्य रचनाएँ, जीवन परिचय।
🟠 1. शब्दालंकार (Shabd Alankar)
🔸 जब किसी शब्द के चयन और पुनरावृत्ति से चमत्कार उत्पन्न हो – और वही प्रभाव समानार्थी शब्दों से न बन पाए – तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
✴️ शब्दालंकार के प्रकार:
🔹 अनुप्रास अलंकार
🔹 यमक अलंकार
🔹 पुनरुक्ति अलंकार
🔹 विप्सा अलंकार
🔹 वक्रोक्ति अलंकार
🔹 श्लेष अलंकार
🟣 अनुप्रास अलंकार
🔸 किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति से उत्पन्न श्रव्य-सौंदर्य।
📝 उदाहरण:
चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।
(यहाँ “च” वर्ण की आवृत्ति हो रही है।)
🔽 अनुप्रास के उपभेद:
💠 छेकानुप्रास: स्वरुप व क्रम से वर्ण आवृत्ति
👉 रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।💠 वृत्यानुप्रास: एक ही वर्ण की आवृत्ति
👉 चामर-सी, चन्दन-सी, चाँदनी चमेली चारु…💠 लाटानुप्रास: शब्द या वाक्यांश की पुनरावृत्ति
👉 तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे…💠 अन्त्यानुप्रास: पंक्तियों के अंत में समान ध्वनि
👉 लगा दी किसने आकर आग / कहाँ था तू संशय के नाग?💠 श्रुत्यानुप्रास: कानों को मधुर लगने वाली ध्वनि
👉 दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते…
🟣 यमक अलंकार
🔸 जब एक ही शब्द बार-बार आये, लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग हो।
📝 उदाहरण:
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
(पहला “कनक” = सोना, दूसरा = धतूरा)
🟣 पुनरुक्ति अलंकार
🔸 जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाए और उसका अर्थ एक ही हो।
📝 उदाहरण:
ठुमुकि-ठुमुकि रुनझुन धुनि-सुनि…
🟣 विप्सा अलंकार
🔸 विशेष भावों को प्रकट करने के लिए शब्दों की प्रभावशाली पुनरावृत्ति।
📝 उदाहरण:
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
🟣 वक्रोक्ति अलंकार
🔸 जब श्रोता, वक्ता की बात का अर्थ अलग निकालता है।
➤ उपभेद:
🎭 काकु वक्रोक्ति: आवाज़ के उतार-चढ़ाव से अर्थ बदलना
👉 मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।🎭 श्लेष वक्रोक्ति: श्लेष (Pun) के कारण अर्थ-भिन्नता
👉 को तुम हौ इत आये कहाँ घनश्याम…
🟣 श्लेष अलंकार
🔸 जब एक ही शब्द से एक साथ अनेक अर्थ निकलें।
📝 उदाहरण:
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
(यहाँ “पानी” – जल, प्रतिष्ठा, जीवन तीनों अर्थ देता है।)
🔵 2. अर्थालंकार (Arth Alankar)
🔸 जब शब्दों के अर्थ से चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न हो – तो वह अर्थालंकार कहलाता है।
शब्द की ध्वनि नहीं, अर्थ की विलक्षणता ही सौंदर्य उत्पन्न करे।
🌟 अर्थालंकार – परिभाषा, भेद और उदाहरण सहित संपूर्ण विवरण
📘 परिभाषा
👉 जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।
🧾 अर्थालंकार के प्रमुख भेद
आइकन | अलंकार का नाम |
---|---|
🔹 | उपमा अलंकार |
🔹 | रूपक अलंकार |
🔹 | उत्प्रेक्षा अलंकार |
🔹 | दृष्टान्त अलंकार |
🔹 | संदेह अलंकार |
🔹 | अतिशयोक्ति अलंकार |
🔹 | उपमेयोपमा अलंकार |
🔹 | प्रतीप अलंकार |
🔹 | अनन्वय अलंकार |
🔹 | भ्रांतिमान अलंकार |
🔹 | दीपक अलंकार |
🔹 | अपहृति अलंकार |
🔹 | व्यतिरेक अलंकार |
🔹 | विभावना अलंकार |
🔹 | विशेषोक्ति अलंकार |
🔹 | अर्थान्तरन्यास अलंकार |
🔹 | उल्लेख अलंकार |
🔹 | विरोधाभाष अलंकार |
🔹 | असंगति अलंकार |
🔹 | मानवीकरण अलंकार |
🔹 | अन्योक्ति अलंकार |
🔹 | काव्यलिंग अलंकार |
🔹 | स्वभावोक्ति अलंकार |
🔹 | कारणमाला अलंकार |
🔹 | पर्याय अलंकार |
🔹 | समासोक्ति अलंकार |
🌿 उपमा अलंकार
📌 तुलना द्वारा सौंदर्य उत्पन्न करना
🔍 परिभाषा: जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण:सागर सा गंभीर हृदय हो, गिरि सा ऊँचा हो जिसका मन।
🔧 चार अंग:
🟡 उपमेय
🟢 उपमान
🔵 वाचक शब्द
🟣 साधारण धर्म
📚 उपमा अलंकार के भेद:
✅ पूर्णोपमा
✅ लुप्तोपमा
🎭 रूपक अलंकार
📌 जहाँ उपमेय और उपमान में भेद न हो
🎯 उदाहरण:उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
📚 भेद:
🔹 सम रूपक
🔹 अधिक रूपक
🔹 न्यून रूपक
🔮 उत्प्रेक्षा अलंकार
📌 जहाँ कल्पना प्रमुख हो
🎯 उदाहरण:सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
📚 भेद:
💠 वस्तुप्रेक्षा
💠 हेतुप्रेक्षा
💠 फलोत्प्रेक्षा
🪞 दृष्टान्त अलंकार
📌 बिम्ब-प्रतिबिम्ब की समानता पर आधारित
🎯 उदाहरण:एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं।
❓ संदेह अलंकार
📌 जहाँ वस्तु की पहचान में संशय हो
🎯 उदाहरण:यह काया है या शेष की छाया?
🔥 अतिशयोक्ति अलंकार
📌 सीमा से अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन
🎯 उदाहरण:हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, सगरी लंका जल गई।
🌀 उपमेयोपमा अलंकार
📌 उपमेय और उपमान दोनों की तुलना एक-दूसरे से
🎯 उदाहरण:तौ मुख सोहत है ससि सो, अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
🔁 प्रतीप अलंकार
📌 उल्टी उपमा का प्रयोग
🎯 उदाहरण:नेत्र के समान कमल है।
🔗 अनन्वय अलंकार
📌 जहाँ उपमेय के समान कोई और न हो
🎯 उदाहरण:भारत के सम भारत है।
🧠 भ्रांतिमान अलंकार
📌 जहाँ भ्रम उत्पन्न हो
🎯 उदाहरण:महावर देने को नाइन बैठी आय।
🕯️ दीपक अलंकार
📌 समान गुणों की एक साथ उपस्थिति
🎯 उदाहरण:अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।
🕵️♂️ अपहृति अलंकार
📌 सत्य को छिपाकर असत्य को स्थापित करना
🎯 उदाहरण:सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
📈 व्यतिरेक अलंकार
📌 जब उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ दिखाया जाए
🎯 उदाहरण:मुख की समानता चंद्रमा से कैसे दूँ?
💡 विभावना अलंकार
📌 कारण के बिना कार्य होना
🎯 उदाहरण:बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।
🎯 विशेषोक्ति अलंकार
📌 सभी कारण होने पर भी कार्य न हो
🎯 उदाहरण:नीर भरे नितप्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
🔄 अर्थान्तरन्यास अलंकार
📌 एक कथन से दूसरे का समर्थन
🎯 उदाहरण:कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।
📚 उल्लेख अलंकार
📌 एक वस्तु को अनेक रूप में प्रस्तुत करना
🎯 उदाहरण:विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त।
⚖️ विरोधाभाष अलंकार
📌 विरोधाभास की अनुभूति
🎯 उदाहरण:आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
🧩 असंगति अलंकार
📌 कार्य और कारण में असंगति
🎯 उदाहरण:ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
🧍♂️ मानवीकरण अलंकार
📌 जड़ वस्तुओं में मानवता का आरोप
🎯 उदाहरण:अम्बर पनघट में डुबो रही, तारा घट उषा नगरी।
👤 अन्योक्ति अलंकार
📌 एक बात के माध्यम से दूसरी बात कहना
🎯 उदाहरण:फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
🧭 काव्यलिंग अलंकार
📌 युक्तियुक्त बातों का समर्थन
🎯 उदाहरण:कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
🧘 स्वभावोक्ति अलंकार
📌 किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन
🎯 उदाहरण:सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।
🌈 उभयालंकार
📌 शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित अलंकार
🎯 उदाहरण:कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
📚 भेद:
🔷 संसृष्टि
🔷 संकर
🧪 अलंकार युग्म में अंतर
📌 मुख्य अंतर:
✳️ यमक और श्लेष में अंतर
✳️ उपमा और रूपक में अंतर
✳️ उपमा और उत्प्रेक्षा में अंतर
✳️ संदेह और भ्रांतिमान में अंतर
- क्रिया विशेषण
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✨ अर्थालंकार जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता है।
📚 अर्थालंकार के भेद: 🌸 उपमा अलंकार 🪞 रूपक अलंकार 🌠 उत्प्रेक्षा अलंकार 🪷 दृष्टान्त अलंकार ❓ संदेह अलंकार 🔥 अतिशयोक्ति अलंकार 🔄 उपमेयोपमा अलंकार 🔁 प्रतीप अलंकार 🚫 अनन्वय अलंकार 😵 भ्रांतिमान अलंकार 🕯️ दीपक अलंकार 🧩 अपहृति अलंकार ⚖️ व्यतिरेक अलंकार 💫 विभावना अलंकार ✍️ विशेषोक्ति अलंकार 🔍 अर्थान्तरन्यास अलंकार 📌 उल्लेख अलंकार ♨️ विरोधाभाष अलंकार ⛔ असंगति अलंकार 👤 मानवीकरण अलंकार 🗣️ अन्योक्ति अलंकार 🧠 काव्यलिंग अलंकार 🧘 स्वभावोक्ति अलंकार 🔗 कारणमाला अलंकार ♻️ पर्याय अलंकार 📖 समासोक्ति अलंकार
🌸 उपमा अलंकार: जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी अन्य से की जाए वहाँ उपमा अलंकार होता है। उदाहरण: सागर-सा गंभीर ह्रदय हो, गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
🧩 उपमा अलंकार के अंग:
उपमेय
उपमान
वाचक शब्द
साधारण धर्म
🔹 उपमा अलंकार के भेद:
पूर्णोपमा अलंकार: जिसमें उपमा के सभी अंग हों।
लुप्तोपमा अलंकार: जिसमें उपमा के कुछ अंग लुप्त हों।
🪞 रूपक अलंकार: जहाँ उपमेय और उपमान के भेद को समाप्त कर दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है। उदाहरण: उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
🌠 उत्प्रेक्षा अलंकार: जहाँ अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उदाहरण: सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
🪷 दृष्टान्त अलंकार: जहाँ दो वाक्यों में बिंब-प्रतिबिंब भाव हो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। उदाहरण: एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।
❓ संदेह अलंकार: जहाँ उपमेय और उपमान की समानता से भ्रम उत्पन्न हो वहाँ संदेह अलंकार होता है। उदाहरण: यह काया है या शेष उसी की छाया।
🔥 अतिशयोक्ति अलंकार: जब वर्णन में मर्यादा का उल्लंघन हो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण: हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि। सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।
🔄 उपमेयोपमा अलंकार: जहाँ उपमेय और उपमान को परस्पर उपमा दी जाती है। उदाहरण: तौ मुख सोहत है ससि सो अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
🔁 प्रतीप अलंकार: जहाँ उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को ही उपमेय कहा जाए। उदाहरण: नेत्र के समान कमल है।
🚫 अनन्वय अलंकार: जब उपमेय की समता में कोई उपमान न आये। उदाहरण: यद्यपि अति आरत – मारत है, भारत के सम भारत है।
😵 भ्रांतिमान अलंकार: जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाए। उदाहरण: पायें महावर देन को नाईन बैठी आय। फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।
🕯️ दीपक अलंकार: जहाँ एक ही धर्म को प्रस्तुत और अप्रस्तुत पर समान रूप से लागू किया जाए। उदाहरण: चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
🧩 अपहृति अलंकार: जहाँ सत्य को छिपाकर झूठी वस्तु की स्थापना हो। उदाहरण: सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
⚖️ व्यतिरेक अलंकार: जहाँ उपमान की अपेक्षा उपमेय की श्रेष्ठता दर्शायी जाए। उदाहरण: मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चाँद कलंकी वह निकलंकू।
💫 विभावना अलंकार: जहाँ कार्य का कारण उपस्थित न होकर भी कार्य सिद्ध हो जाए। उदाहरण: बिनु पग चलै सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
✍️ विशेषोक्ति अलंकार: जहाँ सभी कारणों की उपस्थिति में भी कार्य न हो। उदाहरण: नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
🔍 अर्थान्तरन्यास अलंकार: जहाँ सामान्य कथन से विशेष या विशेष से सामान्य कथन का समर्थन हो। उदाहरण: बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
📌 उल्लेख अलंकार: जहाँ एक ही वस्तु को कई रूपों में बताया जाए। उदाहरण: विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।
♨️ विरोधाभाष अलंकार: जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास हो। उदाहरण: आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
⛔ असंगति अलंकार: जहाँ कार्य और कारण में असंगति हो। उदाहरण: ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
👤 मानवीकरण अलंकार: जहाँ निर्जीव वस्तुओं को मानव रूप में प्रस्तुत किया जाए। उदाहरण: बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नगरी।
🗣️ अन्योक्ति अलंकार: जहाँ किसी उक्ति द्वारा किसी अन्य को बात कही जाए। उदाहरण: फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
🧠 काव्यलिंग अलंकार: जहाँ किसी बात के समर्थन में कोई युक्ति दी जाती है। उदाहरण: कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।
🧘 स्वभावोक्ति अलंकार: जहाँ किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन हो। उदाहरण: सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।
💎 उभयालंकार: जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित हो। उदाहरण: कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
🧷 उभयालंकार के भेद:
🧬 संसृष्टि: विभिन्न अलंकारों की पृथक उपस्थिति (तिल-तंडुल न्याय)।
🧪 संकर: विभिन्न अलंकारों का आपसी मिश्रण (नीर-क्षीर न्याय)।
👉 संसृष्टि उदाहरण: भूपति भवनु सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न परतर पावा। मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।। (यहाँ प्रतीप और उत्प्रेक्षा दोनों की संसृष्टि है।)
👉 संकर उदाहरण: सठ सुधरहिं सत संगति पाई। पारस-परस कुधातु सुहाई।। (यहाँ अनुप्रास और यमक अलंकार इस प्रकार मिले हैं कि उन्हें पृथक करना संभव नहीं।)
🆚 यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
🔶 यमक अलंकार
इस अलंकार में एक ही शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार होता है, परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ अलग
🔹 पहले "नगन जड़ाती" = वस्त्रों में नग जड़वाना
🔹 दूसरे "नगन जड़ाती" = वस्त्र विहीन होकर काँपना
🔹 पहला "कनक" = सोना
🔹 दूसरा "कनक" = धतूरा
🔷 श्लेष अलंकार
इसमें शब्द एक बार प्रयोग होता है, लेकिन उसके एक से अधिक अर्थ
🔹 "श्रुति" = कान और वेद — दोनों अर्थ संभव हैं
🔹 "विमलाम्बरा" = स्वच्छ आकाश वाली और स्वच्छ वस्त्रों वाली
📊 तुलना सारणी
🔸 विशेषता | 🟠 यमक अलंकार | 🔵 श्लेष अलंकार |
---|---|---|
शब्द प्रयोग | शब्द कई बार प्रयुक्त | शब्द एक बार प्रयुक्त |
अर्थ | हर बार अलग अर्थ | एक साथ अनेक अर्थ |
प्रभाव | ध्वनि की पुनरावृत्ति से सौंदर्य | शब्द की बहु-अर्थता से सौंदर्य |
उदाहरण | कनक-कनक ते सौ गुनी... | विमलाम्बरा... |
🆚 अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर
🔶 अनुप्रास अलंकार
जब किसी ‘वर्ण’ की आवृत्ति बार-बार होती है और उससे काव्य में मधुरता या सौंदर्य उत्पन्न होता है, तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।
🔹 इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है।
बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
🔷 यमक अलंकार
इस अलंकार में एक शब्द का प्रयोग बार-बार होता है, लेकिन प्रत्येक बार उसका अर्थ अलग
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर
🔹 "मनका" का एक अर्थ – माला का मोती
🔹 "मनका" का दूसरा अर्थ – मन की भावनाएँ
तीन बेर खाती थी, वह तीन बेर खाती है।
🔹 पहले "बेर" = संख्या (तीन बार खाना)
🔹 दूसरे "बेर" = एक फल
📊 तुलना सारणी
🔸 विशेषता | 🟠 अनुप्रास अलंकार | 🔵 यमक अलंकार |
---|---|---|
आवृत्ति | वर्ण की आवृत्ति | शब्द की आवृत्ति |
मुख्य प्रभाव | ध्वनि सौंदर्य | अर्थ भिन्नता से सौंदर्य |
अर्थ का संबंध | कोई अर्थ नियम नहीं | प्रत्येक प्रयोग का भिन्न अर्थ |
उदाहरण | तरनि-तनूजा तट... | तीन बेर खाती... |
🆚 उपमा और रूपक अलंकार में अंतर
🔶 उपमा अलंकार
जब उपमेय और उपमान के बीच स्पष्ट समानता बताई जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।
हरि पद कोमल कमल से
🔹 ईश्वर के चरणों की समानता “कमल” की कोमलता से बताई गई है।
🔷 रूपक अलंकार
जब उपमेय पर उपमान का अभेद रूप से आरोप कर दिया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।
मन मधुकर पन कै तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।
🔹 यहाँ मन पर “भ्रमर” का और चरणों पर “कमल” का अभेद रूप में आरोप किया गया है।
📊 तुलना सारणी
🔸 विशेषता | 🟠 उपमा अलंकार | 🔵 रूपक अलंकार |
---|---|---|
सम्बंध | उपमेय और उपमान के बीच समानता | उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप |
शब्द प्रयोग | जैसे, सा, समान, मानो आदि | सीधा अभेद संबंध, उपमान को उपमेय बना देना |
प्रभाव | समानता का संकेत | पूर्ण तादात्म्य (अभेद) |
उदाहरण | हरि पद कोमल कमल से | मन मधुकर पन कै तुलसी... |
🆚 उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर
🔶 उपमा अलंकार
जब उपमेय और उपमान की समानता गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर बताई जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।
फूलों सा चेहरा तेरा
🔹 चेहरा फूलों के समान कोमल है, इसलिए तुलना की गई है।
🔷 उत्प्रेक्षा अलंकार
जब उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें “मानो”, “जैसे”, “शायद”, आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
मुख मानो चन्द्रमा है।
🔹 मुख की कल्पना चन्द्रमा के समान की गई है (सीधा नहीं कहा कि मुख चन्द्रमा है)।
📊 तुलना सारणी
🔸 विशेषता | 🟠 उपमा अलंकार | 🔵 उत्प्रेक्षा अलंकार |
---|---|---|
स्वरूप | समानता को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया | उपमान की संभावना या कल्पना की गई |
संकेत शब्द | जैसे, सा, समान | मानो, जैसे, प्रतीत होता है |
मुख्य अंतर | तुलना की जाती है | कल्पना की जाती है |
उदाहरण | फूलों सा चेहरा तेरा | मुख मानो चन्द्रमा है |
🆚 संदेह और भ्रांतिमान अलंकार में अंतर
🔶 संदेह अलंकार
जब समानता के कारण किसी दृश्य या वस्तु को लेकर अनिश्चय या भ्रमसंदेह अलंकार
कैघों व्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु
वीर रस वीर तरवारि सी उघारी है।
🔹 जलती हुई पूँछ से धुआँ देखकर ऐसा लगता है मानो
👉 आकाश में धूमकेतु हैं
👉 या कोई वीर तलवार निकाल रहा है
(अनिश्चितता बनी रहती है)
🔷 भ्रांतिमान अलंकार
जब समानता के कारण किसी वस्तु में दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए, तब भ्रांतिमान अलंकारपक्का भ्रम
नाक का मोती अधर की कान्ति से
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
🔹 तोता नथ का मोती देखकर उसे अनार का बीज समझ बैठा।
🔹 उसे लगा कि यह तोता किसी दूसरे तोते की चोंच में अनार का दाना है।
📊 तुलना सारणी
🔸 विशेषता | 🟠 संदेह अलंकार | 🔵 भ्रांतिमान अलंकार |
---|---|---|
मुख्य आधार | समानता के कारण अनिश्चितता | समानता के कारण भ्रम |
स्थिति | क्या है, यह स्पष्ट नहीं | जो है, उसे कुछ और समझ लिया |
प्रभाव | दो संभावनाओं में झूलता भाव | स्पष्ट भ्रम (गलत निष्कर्ष) |
उदाहरण | धूमकेतु या तलवार? | मोती = अनार का बीज |